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उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद द्वारा वृंदावन में गीता शोध संस्थान एवं रासलीला अकादमी का संचालन 04 मई 2022 से किया जा रहा है। गीता शोध संस्थान एवं रासलीला अकादमी का अपना तीन मंजिल का विशाल भवन है। भवन में दो सभागार, दो स्टूडियो, लघु संग्रहालय के लिए कक्ष, प्रशिक्षण कक्ष एवं अन्य सुविधाएं उपलब्ध हैं। भविष्य में सांस्कृतिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए इन संसाधनों का उपयोग होगा। परिसर में उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद द्वारा ओपन एयर थियेटर (ओएटी) का निर्माण कराया है। वर्तमान में ओएटी पर सांस्कृतिक कार्यक्रम, नाट्य मंचन, रासलीला, ब्रज भाषा के कवि सम्मेलन आदि के आयोजन हो रहे हैं। समीप ही एक हजार दर्शक क्षमता का आधुनिक तकनीक से दूसरा आडिटोरियम बन रहा है। गीता शोध संस्थान में भक्ति, ज्ञान और कर्म का पाठ पढ़ाने वाली गीता के अध्ययन, शोध और प्रचार- प्रसार का प्रकल्प प्रारंभ कि या गया है। यहां भूतल पर गीता ग्रन्थालय (पुस्तकालय) और वाचनालय की स्थापना की गयी है। गीता पर अनेक लेखकों व प्रकाशकों के अलग-अलग ग्रन्थ इस ग्रंथालय में उपलब्ध हैं। साथ ही ब्रज संस्कृति से जुड़ी पुस्तकें भी रखी गयी हैं। सामाजिक विषयों पर लिखी गयीं अनेक पुस्तकें भी ग्रंथालय में उपलब्ध हैं। ग्रंथालय के लिए साहित्य उपलब्ध कराने एवं उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद के साहित्य प्रकाशन के लिए वाणी प्रकाशन नई दिल्ली से एमओयू (अनुबंध) है। गीता से जुड़ी हुई अन्य शैक्षिक गतिविधियों को संचालित करने के ध्येय से 8 अगस्त 2023 को भक्ति वेदांत रिसर्च सेंटर पुणे के साथ उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने एमओयू (अनुबंध) किया गया है। गीता शोध संस्थान के अलग-अलग सभागारों में समय-समय पर ब्रज संस्कृति से जुड़े कार्यक्रम, कार्यशाला, संगोष्ठियां,अन्य धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन होते हैं।


गीता शोध संस्थान और रासलीला अकादमी एक ही भवन में संचालित है। रासलीला अकादमी की स्थापना का उद्देश्य यही है कि भगवान की स्थली वृंदावन में परंपरागत रासलीला का संरक्षण किया जाए। रासलीला के मंचन व निर्देशन के लिए कलाकारों की एक नयी पीढ़ी तैयार की जाएं। यहां 10 से 18 वर्ष आयु वर्ग बच्चों को रास का मंचन सिखाने के ध्येय से एक वर्षीय सर्टिफिकेट कोर्स प्रारंभ किया गया है। इसके लिए उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग के भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय लखनऊ से एफिलेशन लिया है। इससे पूर्व 12 जून 2023 को इस विश्वविद्यालय से कोर्स संचालन के लिए उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद ने एमओयू भी किया है।

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श्रीमद् भगवद् गीता की महिमा असीम है, भगवान् श्रीकृष्ण के मुख से निर्झरित शब्दों को महर्षि वेदव्यास द्वारा अठारह अध्यायों में सजाया गया है, इसके अध्ययन मात्र से माया कृत प्रदूषण की कारा स्वतः निर्मलता को धारण कर लेती है। इस उपनिषद रूपी गंगाजल का सेवन मनव मात्र को आत्म दर्शन के योग्य बना देता है। गीता का सिद्धान्त है कि कर्म करने वाले केवल कर्म करने में ही अपना अधिकार माने, फल के लिए उतावले न हों। निष्काम कर्म योग के अभ्यास से जन्म बन्धन से मुक्त होकर तुम अनामय पद को प्राप्त कर लोगे। सगुण ब्रह्म की प्राप्ति केवल अनन्य भक्ति से ही होती है, किन्तु विश्व रूप दर्शन भगवान की कृपा से ही सम्भव है। व्यवहार और परमार्थ के लिए जितनी विधाएँ अपेक्षित हैं वे सभी गीता में उपलब्ध हैं। गीता में स्वयं ही अपने लिये श्रीकृष्ण ने वेदान्तकृत और वेदवेद्य कहा है। अर्जुन के समक्ष साकार रूप में खड़े वेदान्त वेद्य तत्व श्रीकृष्ण ने उसे कहा, अर्जुन! तुम मुझे इन आंखों से नहीं देख सकते, मैं तुम्हें दिव्य नेत्र देता हूँ, उससे मेरे ऐश्वर्य योग को देखो। यह ऐश्वर्य योग ही अघट घटना पाटव है।

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चित्रकला प्रदर्शनी

दिनांक - 12th अक्टूबर 2022

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पुष्टिमार्ग बैठक

दिनांक - 09 जनवरी 2023

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सप्त देवालय संगोष्ठी

दिनांक - 10th फरवरी 2023

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रासलीला प्रशिक्षण कार्यशाला

दिनांक - 15 जून to 28 जुलाई 2023

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अगस्त 2023

Vol.2

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जुलाई 2023

Vol.1

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जून 2023

Vol.4

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मई 2023

Vol.3

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अध्याय 1: कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में सेनाओं का अवलोकन

कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में पांडवों और कौरवों की दो सेनाएं आमने-सामने हैं। कई संकेत पांडवों की जीत के संकेत देते हैं। पांडवों के चाचा और कौरवों के पिता धृतराष्ट्र, अपने पुत्रों की जीत की संभावना पर संदेह करते हैं और अपने सचिव संजय से युद्ध के मैदान के दृश्य का वर्णन करने के लिए कहते हैं।

पांच पांडव भाइयों में से एक, अर्जुन लड़ाई से ठीक पहले एक संकट से गुज़रता है। वह अपने परिवार के सदस्यों और शिक्षकों के लिए करुणा से अभिभूत है, जिन्हें वह मारने वाला है। कृष्ण के सामने कई महान और नैतिक कारण प्रस्तुत करने के बाद कि वह युद्ध क्यों नहीं करना चाहते हैं, अर्जुन ने दुःख से अभिभूत होकर अपने हथियार एक ओर रख दिए। लड़ने के लिए अर्जुन की अनिच्छा उनके दयालु हृदय को इंगित करती है; ऐसा व्यक्ति पारलौकिक ज्ञान प्राप्त करने के योग्य होता है।

अध्याय 2: गीता की सामग्री का सारांश

कृष्ण को अर्जुन के तर्कों से सहानुभूति नहीं है। बल्कि, वह अर्जुन को याद दिलाते हैं कि उसका कर्तव्य लड़ना है और उसे अपने दिल की कमजोरी पर काबू पाने का आदेश देते हैं। अर्जुन अपने रिश्तेदारों को मारने के प्रति घृणा और कृष्ण की इच्छा कि वह युद्ध करे, के बीच फटा हुआ है। व्यथित और भ्रमित, अर्जुन ने कृष्ण से मार्गदर्शन मांगा और उनका शिष्य बन गया।

कृष्ण अर्जुन के आध्यात्मिक गुरु की भूमिका निभाते हैं और उसे सिखाते हैं कि आत्मा शाश्वत है और उसे मारा नहीं जा सकता। युद्ध में मरना एक योद्धा को स्वर्गीय ग्रहों में बढ़ावा देता है, इसलिए अर्जुन को आनन्दित होना चाहिए कि जिन लोगों को वह मारने वाला है, वे श्रेष्ठ जन्म प्राप्त करेंगे। एक व्यक्ति शाश्वत रूप से एक व्यक्ति है। केवल उसका शरीर नष्ट होता है। इस प्रकार, शोक करने के लिए कुछ भी नहीं है। युद्ध न करने का अर्जुन का निर्णय ज्ञान और कर्तव्य की कीमत पर भी


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ISKCON geeta
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GEIO GEETA


गीता शोध संस्थान के पदाधिकारी

श्री जयवीर सिंह

मंत्री, पर्यटन एवं संस्कृति

उ०प्र० सरकार

श्री योगी आदित्यनाथ जी

मुख्यमंत्री / अध्यक्ष

उ०प्र० ब्रज तीर्थ विकास परिषद् ,मथुरा

श्री जयवीर सिंह

मंत्री, पर्यटन एवं संस्कृति

उ०प्र० सरकार

श्रीमती हेमा मालिनी

माननीय सांसद

श्री शैलजा कान्त मिश्र

उपाध्यक्ष

उ०प्र० ब्रज तीर्थ विकास परिषद् ,मथुरा

श्री मुकेश मेश्राम

प्रमुख सचिव, पर्यटन एवं संस्कृति

उ०प्र० सरकार

श्री शैलजा कान्त मिश्र

उपाध्यक्ष

उ०प्र० ब्रज तीर्थ विकास परिषद् ,मथुरा

श्री एस बी सिंह

सीईओ

उ०प्र० ब्रज तीर्थ विकास परिषद् ,मथुरा

श्री जे पी पाण्डेय

डिप्टी सीईओ

उ०प्र० ब्रज तीर्थ विकास परिषद् ,मथुरा

डॉ उमेश चन्द्र शर्मा

ब्रज संस्कृति विशेषज्ञ

उ०प्र० ब्रज तीर्थ विकास परिषद् ,मथुरा

श्री दिनेश खन्ना

निदेशक

गीता शोध संस्थान

श्री डी के शर्मा

जिला पर्यटन अधिकारी

मथुरा

श्री चन्द्र प्रताप सिंह सिकरवार

कोऑर्डिनेटर

गीता शोध संसथान


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